मारनेरि नम्बि

 

श्रीः

श्रीमते रामानुजाय नमः

श्रीमद् वरवरमुनये नमः

श्री वानाचलमहामुनये नमः

alavandhar-deivavariandan-maranerinambi
आळवन्दार्(बीच में) दैववारी आण्डान् और मारनेरि नम्बि के साथ – श्री रंगम् श्री रामानुजर् सन्निधि में मूर्ति

तिरुनक्षत्र – ज्येष्ठ मास , आश्ळेषा नक्षत्र

अवतार स्थल – पुरांतकम् (पाण्ड्य नाडु में एक गाँव )

आचार्य – आळवन्दार्

स्थल जहाँ से परमपद को प्रस्थान हुए – श्री रंगम्

मारनेरि नम्बि आळवन्दार् के प्रिय शिष्य थे । चौथे वर्ण में पैदा हुए स्वामि, पेरिया पेरुमाळ और उनके आचार्य आळवन्दार् के प्रति लगाव के कारण श्री रंगम् में जाने जाते थे ।

इन्हें मारनेर् नम्बि कहके भी सम्भोदित करते हैं – जो मारन (नम्माळ्वार्) की तरह गुणों से सम्पन्न हैं ।

यह आळवन्दार् के कालक्षेप सुनने में और पेरिय पेरुमाळ के गुणानुभव में पूरी तरह से जुट जाने के लिए मशूर थे । राग – अनुराग के अतीत, भव-बन्धनों से विमुक्त होकर श्री रंगम् मंदिर के प्रकाराम में ही अपना जीवन बिता रहे थे ।

अन्तिम दशा में पेरिय नम्बि (जो अपने प्रिय सखा ) से विनती करते हैं कि उनके अन्तिम सँस्कार का भार खुद स्वीकार करें और उनके देह सम्बन्धि रिश्तेदारों को उनकी तिरुमेनि (दिव्य रूप) को न सौंपें क्यूँकि वह श्री वैष्णव नहीं हैं । उनके शरीर की तुलना हविस (यज्ञ में समर्पण किया जाने वाला) से करते हुए बताते हैं कि वह वस्तु केवल भगवान को समर्पण करने लायक है और कोई अन्य लोग उसे छूना भी नहीं चाहिए । पेरिय नम्बि उनकी प्रार्थना को स्वीकार करते हैं और मारनेरि नम्बि के परम पदम् प्रस्थान होने के बाद उनका चरम कैंकर्य विधिपूर्वक करते हैं । उनके वर्ण के कारण स्थानिक वैष्णव पेरिय नम्बि के इस कार्य को अस्वीकार करते हैं और उनसे चुनौती करते हैं । उनके इस कार्य के बारे में एम्पेरुमानार् से शिकायत करते हैं । एम्पेरुमानार् पेरिय नम्बि के ज़रिये मारनेरि नम्बि की महानता की स्थापना करना चाहते थे और इसी कारण से पेरिय नम्बि के पास जाकर उनसे प्रश्न करते हैं । एम्पेरुमानार् उनसे पूछते हैं कि “मैं एक तरफ सभी जनों के दिमाग़ में शास्त्र के प्रति भक्ति और विश्वास बढ़ाने की कोशिश कर रहा हूँ और आप दूसरी तरफ ऊपरी तौर से शास्त्रों के विरुद्ध काम क्यूँ कर रहें हैं ? (यहाँ शास्त्र का मतलब विशेष शास्त्र – भागवत कैंकर्य) “। पेरिय नम्बि जवाब देते हैं कि “भागवत कैंकर्य करने के लिए हम किसी और को नियमित नहीं कर सकते हैं । कैंकर्य खुद करना चाहिए । जटायु के अन्तिम सँस्कार श्री राम ने किया है । मैं श्री राम से बड़ा नहीं हूँ और वह जटायु से कम नहीं हैं – इसलिए उनके लिए कैंकर्य करना दोष रहित हैं । नम्माळ्वार् के पयलुम् शुडरोळि (तिरुवाय्मोळि ३.७ ) और नेडुमार्केडिमै (तिरुवाय्मोळि ८.१० ) भागवत शेषत्व को गौरवान्वित करना केवल सैद्धान्तिक नहीं हैं । उनके दिए गए दिव्य उपदेशों में से हमें कम से कम कुछ विषयों का पालन करने की कोशिश करना चाहिए ।” यह सुनकर एम्पेरुमानार्  बहुत प्रसन्न होते हैं और पेरिय नम्बि को दण्डवत प्रणाम करते हैं और घोषणा कर देते हैं कि पेरिय नम्बि ने वास्तव में एक महान कार्य ही किया हैं । यह सुन्दर संवाद को अति सुन्दरता से मणवाळ मामुनिगळ ने पिळ्ळै लोकाचार्यर् के श्री वचन भूषण २३४ सूत्र के व्याख्यान में लिखा है।

कैसे नम्बि जी का वैभव उपरोक्त व्याख्यान में कुछ जगह पर प्रकाश डाला गया हैं । आईये कुछ यहाँ देखे ।

  • तिरुप्पावै २९ – आई जनन्याचार्यर् व्याख्यान – इस पाशुर के व्याख्यान में पेरिय नम्बि और एम्पेरुमानार् के बीच में घटित सम्वाद का वर्णन किया गया है । मारनेरि नम्बि के अन्तिम दिनों में उन्होंने बहुत शारीरिक बाधायें झेलि । उस समय वह चिन्तित हो जाते हैं कि उनके अन्तिम क्षण में वह एम्पेरुमान् पे ध्यान नहीं कर सकेंगे । उनकी दशा देखकर पेरिय नम्बि एम्पेरुमानार् से पूछते हैं कि क्या मारनेरि नम्बि परम पद प्राप्त करेंगे। एम्पेरुमानार् जवाब देते हैं कि अवश्य उन्हें परम पद प्राप्त होगा क्यूँकि श्री वराह पेरुमाळ ने अपने वराह चरम श्लोक में बताया है कि जो कोई भी उन्हें आश्रय किये हैं वो उनके बारे में सोचेंगे और उनके अन्तिम समय में परम पद अनुग्रह करेंगे । पेरिय नम्बि कहते हैं कि ऐ शब्दों को स्वीकार नहीं कर सकते हैं क्यूँकि यह हो सकता हैं कि केवल अपने दया(भू देवी के प्रति उनकी प्रेम) के कारण उन्होंने कहा होगा और वास्तव में अपने वचन की पूर्ती नहीं भी कर सकते हैं । एम्पेरुमानार् कहते हैं कि पिराट्टी हरदम एम्पेरुमान् के साथ रहते हैं और उन्हें उस समय संतुष्ट करने के लिए ऐसा कुछ भी नहीं कहेंगे । पेरिय नम्बि उनसे प्रमाणं (सबूत) माँगते हैं जहाँ बतलाया गया है कि भगवद् विषय में संलग्न हुए भक्तों को मोक्ष मिला है। एम्पेरुमानार् कण्णन एम्पेरुमान् – गीता ४. १० ( श्रीमद् भगवद् गीता ) श्लोक बताते हैं – “जन्म कर्म च मे दिव्यम् एवं यो वेत्ति तत्वत्: त्यक्त्वा देहम् पुनर् जन्म नैति मामेति सोर्जुना ” कहते हैं की जो भगवान के जन्म और कार्यकलाप जो सच्ची तौर से जानेंगे, वह अपने जीवन के आखिर में परम पद प्रस्थान जरूर होंगे । एम्पेरुमानार् के इन शब्दों को सुनकर पेरिय नम्बि संतुष्ट हो जाते हैं ।
  • पेरिय तिरुमोळि ७.४ – पेरिय वाच्चन पिळ्ळै के व्याख्यान के प्रस्तावन में – इस पदिग (कंसोरा वेंकुरुति ), तिरुमंगै आळ्वार् ने तिरुसेरै सारनाथ एम्पेरुमान् के आश्रित श्री वैष्णवों का कीर्तन करते हैं । यहाँ पेरिय नम्बि  मारनेरि नम्बि का अन्तिम सँस्कार पूर्ती करने का विषय सूचित किया जाता है ।
  • मुदल तिरुवन्दादि १ – नम्पिळ्ळै व्याख्यान – यहाँ बताया जाता है कि – अगर कोई मारनेरि नम्बि से यह पूछे कि कैसे एम्पेरुमान् को याद रखे , तब एम्पेरुमान् को भूलने का रास्ता बताने के लिए उत्तर देते हुए पूछते हैं (क्यूँकि उनका ध्यान एम्पेरुमान् पर निरंतर लग्न रहता हैं और उन्हें भूलना वह सोच भी नहीं सकते )।
  • श्री वचन भूषणम्(३२४) – पिळ्ळै लोकाचार्यर् ने इस अनुच्छेद में श्री वैष्णवों का कीर्तन किया हैं और स्थापित करते हैं कि एक खास वर्ण में पैदा होने के कारण श्री वैष्णव की महानता कम नहीं होती है । कई उदाहरणों में से उन्होंने पेरिय नम्बि एम्पेरुमानार् को मारिनेरि नम्बि के अन्तिम सँस्कार करने का विवरण देते हैं । मणवाळ मामुनिगळ अपने सुन्दर व्याख्यान में इस सम्वाद का सार बहुत अच्छी तौर से बताते हैं ।
  • आचार्य ह्रदय ८५ -अळगिय मणवाळ पेरुमाळ नायनार्, अपने बड़े भाई पिळ्ळै लोकाचार्यर् का अनुगमन करते हुए – इस चुरनिकै (श्लोक) में इसी घटना का प्रस्ताव करते हुए मारनेरि नम्बि की कीर्ति पे प्रकाश डालते हैं ।

इस प्रकार मारनेरि नम्बि के जीवन के कुछ झलक देखे हैं । आळवन्दार् के प्रति बहुत प्रीति रहने वाले मारनेरि नम्बि के श्री कमल चरणों को अपना प्रणाम समर्पण करें ।

टिप्पणी : मारनेरि नम्बि का तिरुनक्षत्र पेरिय तिरुमुडि अडैवु में आषाढ़ मास , आश्ळेषा नक्षत्र लिखा गया लेकिन वाळि तिरुनाम में ज्येष्ठ मास , आश्ळेषा नक्षत्र लिखा गया है ।

मारनेरि नम्बि तनियन

यामुनाचार्य सच्शिष्यम् रंगस्थलनिवासिनम् ।
ज्ञानभक्त्यादिजलधिम् मरनेरिगुरुम् भजे ।।

source

अड़ियेन् इन्दुमति रामानुज दासि

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