अळगिय मनवाळ पेरुमाळ् नायनार्

श्रीः
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद् वरवरमुनये नमः
श्री वानाचलमहामुनये नमः

Untitled

जन्म नक्षत्र: मार्गशीर्ष, अविट्टम

अवतार स्थल: श्रीरंगम

आचार्य: वडक्कू तिरुविधि पिल्लै

जहाँ परमपद प्राप्त किया : श्रीरंगम

रचनाएँ : तिरुप्पावै 6000 पद व्याख्यान, कण्णिनुण् शिरूताम्बु व्याख्यान, अमलनाधिपिरान व्याख्यान, दिव्यप्रबन्ध रहस्य (आलवार के शब्दों के आधार पर रहस्य त्रय का व्याख्यान), आचार्य हृदयं, पट्टोलै (आचार्य हृदयं के लिए उनके स्वयं का व्याख्यान, जो अब प्राप्त नहीं है), आदि।

अळगिय मनवाळ पेरुमाळ् नायनार का जन्म श्रीरंगम में वडक्कू तिरुविधि पिल्लै के यहाँ नम्पेरुमाल की कृपा से हुआ (वडक्कू तिरुविधि पिल्लै के लेख में हम यह देख चुके हैं- https://acharyas.koyil.org/index.php/2014/03/10/vadakku-thiruveedhi-pillai-hindi/। वे और उनके अग्रज पिल्लै लोकाचार्य श्रीरंगम में ऐसे बड़े हुए जैसे अयोध्या में श्री राम और लक्ष्मण और गोकुल में श्री कृष्ण और बलराम। उन दोनों को एक ही समय में संप्रदाय के महान आचार्यों जैसे नम्पिल्लै, पेरियवाच्चान पिल्लै, वडक्कू तिरुविधि पिल्लै आदि की कृपा कटाक्ष और मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। उन्होंने संप्रदाय अपने पिता वडक्कू तिरुविधि पिल्लै के चरण कमलों में सीखा। इन दोनों आचार्यों का एक विशेष गुण यह है कि उन्होंने नैष्टिक बह्रामचर्य का व्रत लिया था और जीवन पर्यंत उसका पालन किया।

मामुनिगल ने अपने उपदेश रत्ना माला के 47 पासूर में नायनार् और उनके योगदान की महिमा का वर्णन किया है।

नम्चियर चेय्त व्याक्कियैगल् नालिरण्दुक्कू
एनचामै यावैक्कुम इल्लैये
तम् सीराल वैयगुरुविन तम्बी मन्नू मणवाळमुनि
चेय्युमवै तामुम चिल

सामान्य शब्दार्थ:

दिव्यप्रबन्ध के कुछ प्रबंधों के लिए नन्जीयर (वेदांती स्वामीजी) ने व्याख्यान किया था (पेरियवाच्चान पिल्लै से भी पहले)। पेरियवाच्चान पिल्लै के बाद, दिव्यप्रबन्ध के कुछ प्रबंधों के लिए व्याख्यान अळगिय मनवाळ पेरुमाळ् नायनार् ने भी लिखा था, जो सभी दिव्य गुणों से पूर्ण थे और पिल्लै लोकाचार्य के प्रिय अनुज थे।

व्याख्यान में पिल्लै लोकम् जीयर ने नायनार की महिमा का वर्णन किया है।

  • “थम् चीर” पासूर के लिए व्याख्यान में वे नायनार का एक विशेष गुण दर्शाते हैं। वे बताते हैं कि दिव्यप्रबन्ध में नायनार की योग्यता अन्य आचार्यों से कहीं अधिक है। इसे “आचार्य हृदयं” का अध्यन करके समझा जा सकता है, जो पुरी तरह से दिव्यप्रबन्ध के शब्दों का उपयोग करके बनाया गया है (साथ ही इतिहास और पुराणों से भी कुछ शब्दों को लिया गया है)।
  • “वैय गुरुविन तम्बी” में यह दर्शाया गया है कि नायनार की महानता पिल्लै लोकाचार्य के अनुज के रूप में जन्म लेने से है। वे “जगत् गुरुवरानुज” (जगत् गुरु पिल्लै लोकाचार्य के अनुज) के रूप में लोकप्रिय है।

जब की नायनार तिरुप्पावै, कण्णिनुण् शिरूताम्बु, अमलनाधिपिरान आदि के लिए व्याख्यान किये हैं, जो सभी आनंददायक है, पर उनकी श्रेष्ठ कृति आचार्य हृदयं है।

उनके व्याख्यान/ रचनाएं:

  • उनके तिरुप्पावै 6000 पद का व्याख्यान बहुत ही विस्तृत और बहुत सुंदर है। इस व्याख्यान में, हमारे संप्रदाय के सार का सुंदरता से प्रदर्शन प्रतिपादन किया गया है। नायनार ने अपने तिरुप्पावै व्याख्यान में भगवान के उपायात्वं/उपेयत्वं, भगवान की निर्हेतुक कृपा, अम्माजी का पुरुष्कार, परगत स्वीकारं, कैंकर्य विरोधी आदि सिद्धांतों को बड़ी उत्कृष्टता से समझाया है।
  • उनके द्वारा दिया गया अमलनाधिपिरान व्याख्यान हमारे संप्रदाय की श्रेष्ठ कृतियों में से एक है। उसमे वे बहुत सुंदरता से भगवान के दिव्य रूप के अनुभव और सिद्धांत का समागम की व्याख्यान करते हैं। इसे हम तिरुप्पानालवार (परकाल स्वामीजी) के अर्चावतार अनुभव में पहले देख चुके हैं- http://ponnadi.blogspot.in/2012/10/archavathara-anubhavam-thiruppanazhwar.html
  • उनके कण्णिनुण् शिरूताम्बु व्याख्यान में पंचमोपाय (आचार्यचरणों को ही अपना सर्वस्व स्वीकार करना) और आचार्य कैंकर्य की महिमा को बहुत ही सुंदरता से दर्शाया गया है।
  • उनकी दिव्यप्रबन्ध रहस्य, रहस्य त्रय – तिरुमंत्र, द्वायमंत्र और चरमश्लोक के अर्थ को दिव्यप्रबन्ध के शब्दों द्वारा बहुत सुंदरता से समझाया है। यह उन श्रेष्ठ रचनओं में से एक है जिसे दिव्यप्रबन्ध के विशेषज्ञ पसंद करते हैं।
  • अंततः, आचार्य हृदयं, उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति, नम्मालवार और उनके तिरुवाय्मोळि दिव्य प्रबंध की सटीक भावनाओं को प्रदर्शित करती है। यह ग्रंथ, श्री वचन भूषण दिव्य शास्त्र (पिल्लै लोकाचार्य द्वारा कृत) में दर्शाए गए सिद्धांतों को और विस्तार में समझाता है। इसे हम आचार्य हृदयं के माध्यम से नायनार् के अर्चावतार अनुभव में पहले देख चुके हैं- http://ponnadi.blogspot.in/2012/11/archavathara-anubhavam-nayanar-anubhavam.html

किसी की महानता को समझने के लिए, किसी अन्य महानुभाव के द्वारा उनके विषय में कहे हुए शब्दों को देखना चाहिए। नायनार ने अत्यंत अल्प आयु में अपना शरीर त्यागने का निर्णय लिया और पिल्लै लोकाचार्य को यहाँ छोड़कर परमपद की ओर प्रस्थान किया। दुख के सागर में गिरे हुए पिल्लै लोकाचार्य, नायनार के मस्तक को अपनी गोद में रखकर रोते हुए कहते हैं:

मामुदुम्बईमन्नू मणवाल अण्णलोडू
चेममुदन वैकुण्ठं सेंद्रक्काल
मामेनरू थोट्टूरैत्त चोल्लुम तुयम थन्निनाल पोरुलुम
एळुत्तुम् इनग्गुरैप्पारार्

सामान्य शब्दार्थ:

सभी वैभवों से नायनार् के परमपद गमन के पश्चात, यहाँ कौन है जो रहस्य त्रय – तिरुमंत्र, द्वायमंत्र और चरमश्लोक (जहाँ भगवान अपने ह्रदय पर हाथ रखकर कहते हैं “माम्” – मैं रक्षक हूँ) के अर्थ को समझाएगा।

नायनार् की ऐसी महिमा थी कि स्वयं पिल्लै लोकाचार्य उनकी महिमा का वर्णन करते हैं।

हम भी अळगिय मनवाळ पेरुमाळ् नायनार् के चरण कमलों में प्रार्थना करें कि हम भी उनके समान एम्पेरुमानार और अपने आचार्य के प्रति ऐसी निष्ठा प्राप्त करें।

अळगिय मनवाळ पेरुमाळ् नायनार् की तनियन्

द्राविडाम्नाय हृदयं गुरुपर्वक्रमागतम्

रम्यजामात्रुदेवेन दर्शितं कृष्णसूनूना

अळगिय मनवाळ पेरुमाळ् नायनार् का मंगलाशन (जो प्रायः आचार्य हृदयं के बाद गाया जाता है):

तन्तरुळवेणुम् तवत्तोर् तवप्पयानाय

वनत मुदुम्बै मणवाल – चिंतैयिनाल्

नीयुरैत्त मारन निनैविन पोरुलनैत्तेन्

वायुरैत्तु वाळुम् वगै

उनके अर्चावतार अनुभवों को http://ponnadi.blogspot.in/2012/11/archavathara-anubhavam-nayanar-anubhavam.html पर पढ़ा जा सकता है।

अदियेन् भगवति रामानुजदासी

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