श्रीः
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद् वरवरमुनये नमः
श्री वानाचलमहामुनये नमः
जन्म नक्षत्र : मृगशीर्ष, ज्येष्ठा नक्षत्र
अवतार स्थल : श्रीरंगम
आचार्य : कूरेश स्वामीजी, पराशर भट्टर स्वामीजी
स्थान जहाँ परमपद प्राप्त किया : श्रीरंगम
रचनाएं : सुदर्शन शतक, स्तोत्र रत्न व्याख्यान, श्रीसूक्त भाष्य, उपनिषद् भाष्य, नित्य ग्रथं (तिरुवाराधनं), आदि
शिष्य : चेमं जीयर, तिरुक्कुरुगैप् पिरान जीयर, सुंदर पाण्डिय देवन्, आदि
उनका जन्म श्रीरंगम में मृगशीर्ष, ज्येष्ठा नक्षत्र में सिरीय गोविन्द पेरुमाल (एम्बार के भ्राता) के यहाँ हुआ था। सन्यास ग्रहण करने के बाद वे कूर नारायण जीयर, नलं थिगल नारायण जीयर, नारायण मुनि, पेरिय जीयर और श्रीरंग नारायण जीयर आदि के नाम से ज्ञात हुए।
एम्पेरुमानार, कुरेश स्वामीजी, भट्टर
सन्यासाश्रम ग्रहण करने से पहले उनके “एदुत्त कै अलगिय नायनार” नाम के एक पुत्र थे। वे पहले कूरेश स्वामीजी के शिष्य हुए और बाद में वे आल्वान के पुत्र भट्टर के शिष्य हुए और उनसे भी शिक्षा प्राप्त की।
उन्होंने श्रीरंगम मंदिर में बहुत से बाह्य कैंकर्य संपन्न किये जैसे पार्थसारथी सन्निधि, गरुडालवार सन्निधि आदि का निर्माण और पेरिय पेरुमाल के लिए आंतरिक/गोपनीय कैंकर्य।
वेदांताचार्य जो कूर नारायण जीयर के बहुत समय बाद अवतरित हुए, उन्होंने अपनी रचनाओं में उन्हें पेरिय जीयर नाम से संबोधित किया है (नोट: ऐसा माना जाता है कि वहां एक और कूर नारायण जीयर रहते थे, जो वेदंताचार्य के कुछ समय के बाद पैदा हुए)। वेदान्ताचार्य अपने स्तोत्र व्याख्यान में जीयर के स्तोत्र व्याख्यान का उल्लेख करते हैं । उन्होंने जीयर के श्री सूक्त भाष्य और नित्य ग्रंथ का उल्लेख भी अपने रहस्य त्रय सार में किया है। क्यूंकि कूर नारायण जीयर कूरेश स्वामीजी के शिष्य थे तो उन्हें नन्जीयर से आयु में अधिक होना चाहिए- इसलिए नन्जीयर और कूर नारायण जीयर की अलग पहचान करने के लिए वेदान्ताचार्य ने उन्हें पेरिय (बड़े) जीयर कहकर संबोधित किया होगा।
मामुनिगल ने अपने ईडु प्रमाण संग्रह (नम्पिल्लै के ईडु महा व्याख्यान के लिए प्रमाणों का संकलन) में कूर नारायण जीयर के उपनिषद भाष्य का उल्लेख किया है। मामुनिगल ने उनकी महिमा “शुद्ध संप्रदाय निष्ठावान” (वह जिन्हें हमारे संप्रदाय में शुद्ध निष्ठा है) के रूप में की है।
कूर नारायण जीयर को सुदर्शन उपासक के रूप में भी जाना जाता है। एक बार कुरेश स्वामीजी जीयर से कहते है “हमारा जन्म श्री वैष्णव परिवार में हुआ, जहाँ उपासना में प्रवत्त होना अनुचित माना जाता है –उपासना जैसे स्व-प्रयासों में प्रवत्त होने के बजाय हमें पूर्ण रूप से भगवान के श्री चरणों के अधीन होना चाहिए”। जीयर कहते है “मेरी उपासना मेरे लाभ के लिए नहीं है। वह एकमात्र भगवान और भागवतों की सेवा के लिए है”। जीयर के जीवन के बहुत सारे द्रष्टांत उनके इस सिद्धांत को दर्शाते हैं।
- पुराने समय में नम्पेरुमाल, कावेरी नदी में तेप्पोत्सव (नौका पर्व) का आनंद लिया करते थे। एक बार ऐसे उत्सव में, अचानक बाड़ आ जाती है और तेप्पम (नौका) उस बाड़ के पानी के साथ दूर तक बह जाती है। परन्तु जीयर अपनी उपासना शक्ति के प्रयोग से नौका को बहने से रोक देते हैं और उन्हें सुरक्षा से नदी के किनारों पर ले आते है। यह सब देखकर, वे कैंकर्यपरारों को श्रीरंगम शहर में ही एक बड़े तालाब का निर्माण करने का निर्देश देते हैं और व्यवस्था करते हैं कि उसके बाद से तेप्पोत्सव सुरक्षित रूप से मनाया जाये।
नौका में नाचियार के साथ नम्पेरुमाल
- एक बार तिरुवरंगप्पेरुमाल अरैयर किसी रोग से ग्रसित हो जाते हैं, जो पेरिय पेरुमाल के प्रति उनके कैंकर्य को प्रभावित करते हैं। उस समय, कूर नारायण जीयर, सुदर्शन शतक की रचना कर, उसे गा कर सुनाते हैं और अरयर को उस रोग से मुक्ति दिलाते हैं। यह बात सुदर्शन शतक की तनियन में स्पष्टता से दर्शायी गयी है।एम्पेरुमानार के समय के तुरंत बाद, श्रीरंगम के एम्पेरुमानार मठ का कार्य-भार कूर नारायण जीयर को दिया गया। इस मठ का नाम “श्रीरंग नारायण जीयर मठ” हुआ और अनेकों जीयर स्वामी ने इस पद की प्रतिष्ठा को ज़ारी रखा और श्रीरंगम मंदिर कैंकर्य में सहयोग किया।
इस तरह हमने कूर नारायण जीयर के गौरवशाली जीवन की कुछ झलक देखी। हम सब उनके श्री चरण कमलों में प्रार्थना करते हैं कि हम दासों को भी उनकी अंश मात्र भगवत/ भागवत/ आचार्य कैंकर्य प्राप्त हो।
कूर नारायण जीयर की तनियन :
श्रीपराशर भट्टार्य शिष्यं श्रीरंगपालकं।
नारायण मुनिं वन्दे ज्ञानादि गुणसागरं।।
मैं, श्री नारायण मुनि को प्रणाम करता हूँ, जो श्रीपराशर भट्टर के शिष्य हैं, जो श्री रंगम की रक्षा करते हैं और जो ज्ञान, भक्ति, वैराग्य आदि के सागर हैं।
-अदियेन् भगवति रामानुजदासी
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