श्रीः
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद् वरवरमुनये नमः
श्री वानाचलमहामुनये नमः
पिल्लै लोकम् जीयर, तिरुवल्लिक्केणी
तिरुनक्षत्र:: चैत्र, श्रवण नक्षत्र
अवतार स्थल: कांचीपुरम
आचार्य: शठकोपाचार्य
रचनाएँ: तनियन व्याख्यान, रामानुज दिव्य चरित, यतीन्द्र प्रवण प्रभावं, रामानुज नूट्र्रांताति व्याख्यान, श्रीवरवरमुनि स्वामीजी की प्रायः सभी सूक्तियों पर व्याख्यान, कुछ रहस्य ग्रंथों के लिए व्याख्यान, चेय्य तामरै तालिनै (श्रीवरवरमुनि स्वामीजी का वालि तिरुनाम) के लिए व्याख्यान, श्रीवैष्णव समयाचार निष्कर्षम्
कांचीपुरम में जन्मे, वे परवस्तु पट्टरपिरान जीयर (जो श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के अष्ठ दिग्गजों में एक थे) के पड-पौत्र थे और उनका जन्म नाम वरदाचार्य था । वे पिल्लै लोकम जीयर और पिल्लै लोकाचार्य जीयर नाम से भी प्रसिद्ध थे।
उन्होंने तिरुक्कदलमल्लै (महाबलीपुरम-मामल्लपुरम) के स्थलशयन भगवान के मंदिर का जीर्णोद्धार किया और मंदिर में पूजा की उचित विधि स्थापित की। उनके योगदान के लिये राजा ने उनका सम्मान किया और आज भी मंदिर में उनके वंशजों को विशेष सम्मान प्रदान किया जाता है।
वे महान विद्वान् और एक महान इतिहासकार भी थे। उनके जीवन के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं है। परंतु उनकी रचनाएँ हमारे संप्रदाय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
कुछ शिलालेख पाए गए हैं, जिनमें दिव्यदेशों में उनके योगदान का उल्लेख मिलता है।
- वर्ष 1614 ए.डी. से सम्बंधित एक ताम्बे का छापा, जो तिरुक्कदलमल्लै दिव्यदेश में प्राप्त हुआ, यह दर्शाता है कि जीयर अर्थात यतीन्द्र प्रवणं प्रभावं के रचयिता पिल्लै लोकम जीयर (जो यह दर्शाता है की उस समय तक वे श्रीवरवरमुनि स्वामीजी की जीवनी लिखने के कारण बहुत प्रसिद्ध हो गये थे)।
- वर्ष 1614 ए.डी. का एक पत्थर का शिलालेख, जो श्रीरंगम के दूसरे प्राकारं में प्राप्त किया गया, से हमें यह जानकारी प्राप्त होती है कि पिल्लै लोकम जीयर के एक शिष्य ने श्रीरामानुज स्वामीजी की तिरुनक्षत्र दिवस पर क्षीरान का भोग लगाने के लिए 120 स्वर्ण सिक्कों का योगदान दिया था।
उन्होंने अधिकांश दिव्य प्रबन्धों के प्रारंभिक पद अर्थात तनियन पर व्याख्यान की रचना की। इन व्याख्यानों में उन्होंने उस विशिष्ट दिव्य प्रबंध के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को दर्शाया है और उस दिव्य प्रबंध के रचयिता के ह्रदय/मनोभाव का चित्रण किया है।
उन्होंने रामानुज दिव्य चरित्र, श्री रामानुज स्वामीजी के जीवन का बहुत सुंदर वर्णन की है। श्रीरामानुज स्वामीजी की विभिन्न यात्रियों, उनके जीवन और उनके अन्य शिष्यों के जीवन की घटनाओं का इस ग्रंथ में मधुरता से चित्रण किया गया है।
नम्पेरुमाल , श्री वरवरमुनि स्वामीजी को श्रीशैलेश तनियन प्रस्तुत करते हुए
उनका यतीन्द्र प्रवण प्रभावं ग्रंथ पेरियावाच्चान पिल्लै, वडूक्कू तिरुविधि पिल्लै, पिल्लै लोकाचार्य, अळगिय मनवाळ पेरुमाळ् नायनार्, तिरुवाय्मौली पिल्लै और मणवाल मामुनिगल/ श्रीवरवरमुनि स्वामीजी और कई अन्य आचार्यों के वैभवशाली जीवन परिचय का चित्रण करता है। इस ग्रंथ में श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के जीवन का विस्तार से वर्णन किया गया है और उनके बहुमूल्य निर्देशों को अत्यंत सुंदरता से प्रस्तुत किया गया है।
रामानुजार्य दिव्य चरितं और यतीन्द्र प्रवण प्रभावं दोनों ही बहुत से तमिल पसूरों से युक्त हैं जो उनके तमिल भाषा के गहरे ज्ञान को दर्शाता है।
उन्होंने कुछ रहस्य ग्रंथों के व्याख्यान की भी रचना की है।
उन्होंने विलान्चोलै पिल्लै द्वारा रचित सप्त गाथा के लिए भी बहुत सुंदर व्याख्यान की रचना की है। सप्त गाथा, पिल्लै लोकाचार्य के श्रीवचनभूषण दिव्य शास्त्र के सार – आचार्य निष्ठा के विषय में वर्णन करता है।
उन्होंने श्रीवरवरमुनि स्वामीजी की श्री सूक्तियां, उपदेश रत्न माला, तिरुवाय्मौली नुरन्तादी और आरती प्रबंध पर वृहद व्याख्यानों की रचना की है।
उन्होंने श्रीवैष्णव समयाचार निष्कर्षम् नामक एक अत्यंत सुंदर काव्य ग्रंथ की रचना की, जो रामानुज दर्शन (हमारे सत-संप्रदाय) के महत्वपूर्ण सिद्धांतों की अधिकृत रूप से स्थापना करती है। इस ग्रंथ में बहुत से प्रमाणों का उल्लेख किया गया है जो पिल्लै लोकम जीयर के शास्त्रों के गहरे ज्ञान को दर्शाता है।
इस तरह हमने पिल्लै लोकम जीयर के गौरवशाली जीवन की कुछ झलक देखी। उन्होंने हमारे पूर्वाचार्यों की श्रीसूक्तियों पर विस्तृत व्याख्यान की रचना करके अथवा श्रीरामानुज स्वामीजी और श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के महान जीवन परिचय को लिपिबद्ध करके हमारे श्रीवैष्णव संप्रदाय पर बहुत उपकार किया है। हम सब उनके श्री चरण कमलो में प्रार्थना करते हैं कि हम दासों को भी श्री रामानुज स्वामीजी और श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के प्रति उनके समान ही अनुराग विकसित हो।
पिल्लै लोकम जीयर की तनियन (यतीन्द्र प्रवणं प्रभाव से ली गयी):
श्रीसठारी गुरोर्दिव्य श्रीपादाब्ज मधुव्रतम।
श्रीमतयतीन्द्रप्रवणं श्री लोकार्य मुनिं भजे।।
-अदियेन् भगवति रामानुजदासी
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