विळान् चोलै पिल्लै

श्रीः
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्री वानाचलमहामुनये नमः

आलवार एम्पेरुमानार् जीयर तिरुवडीगले चरणं

—————————————————————————————————————————————-

श्री विळान् चोलै पिल्लै, श्री पिल्लै लोकाचार्य के शिष्यों में से एक हैं।

उनका दास्य नाम “नलम् थिगल नारायण दासर्” है।

उनका जन्म स्थल तिरुवनंतपुरम के समीप “आरनुर” ग्राम है।

यह स्थान “करैमनै” नदी के किनारे स्थित है।

उनका जन्म अश्विनी -उत्तरभाद्रपद नक्षत्र में हुआ था (शनिवार 27 अक्टूबर 2012, नंदन वर्ष)।

उनका जन्म ईलव कुल में हुआ था। अपने कुल के कारण वे मंदिर के अंदर नहीं जा सकते थे, इसलिए तिरुवनंतपुरम के अनंत पद्मनाभ मंदिर के गोपुर के दर्शन और मंगलाशासन के लिए वे अपने गाँव के विलम वृक्ष पर चढ़ जाया करते थे।

————————————————————————————————————————————–

तनियन

तुला हिर्बुधन्य संभूतं श्रीलोकार्य पदाश्रितम् |

सप्तगाथा प्रवक्तारं नारायण महं भजे ||

————————————————————————————————————————————

श्रीलोकार्य पदारविंदमखिलम् श्रुत्यर्थ कोसामस्थथा

गोष्ठीन्जचापि तदेकलीन मनसा संजितयनन्तम् मुदा |

श्री नारायण् दासमार्यममलम् सेवे सतां सेवधिम्

श्री वाग्भूषण गूढ़भाव विवृतिम् यस सप्तगाताम् व्यधात् ||

———————————————————————————————————————————–

विळान् चोलै पिल्लै के बारे में अधिक जानकारी

विळान् चोलै पिल्लै ने ईदू, श्री भाष्य, तत्वत्रय और अन्य रहस्य ग्रंथ, अलगिय मणवाल पेरुमाल नायनाराचार्य से सीखा, जो श्री पिल्लै लोकाचार्य के अनुज थे।

उन्होंने श्री वचन भूषण अपने आचार्य श्री पिल्लै लोकाचार्य से सीखा और वे उसके अर्थों में विशेषज्ञ (अधिकारी) माने जाते थे।

श्री विळान् चोलै पिल्लै ने “सप्तगाथा” कि रचन की जिसमें उनके आचार्य के “श्री वचन भूषण” के सार तत्व का वर्णन है।

Note: सप्त गाथा की मूल प्रति संस्कृत, अंग्रेजी और तमिल में http://acharya.org/sloka/vspillai/index.html पर उपलब्ध है।

अपने आचार्य के प्रति सबसे बड़े कैंकर्य स्वरुप, उन्होंने आचार्य द्वारा दिए हुए अंतिम निर्देशों का पालन किया– श्री पिल्लै लोकाचार्य चाहते थे कि उनके शिष्य, तिरुवाय्मोली पिल्लै (तिरुमलै आलवार/ शैलेश स्वामीजी) के समक्ष जायें और उन्हें इस सुनहरी वंशावली के अगले आचार्य के रूप में तैयार करें; श्री पिल्लै लोकाचार्य, विळान् चोलै पिल्लै को तिरुमलै आलवार को श्री वचन भूषण के अर्थ सिखाने के निर्देश देते हैं।

——————————————————————————————————————————————-

विळान् चोलै पिल्लै और तिरुवाय्मोली पिल्लै

जब तिरुवाय्मोली पिल्लै तिरुअनंतपुरम पहुंचे, नमबूधिरीयों ने उनका स्वागत किया और तीन खिडकियों से अनंत पद्मनाभ के दर्शन और मंगलाशासन करके उन्होंने श्री विळान् चोलै पिल्लै कि खोज प्रारंभ की।

जब उन्हें उनके स्थान की जानकारी हुई और वे वहाँ पहुंचे, उन्हें बड़ा अचम्भा हुआ! विळान् चोलै पिल्लै अपने आचार्य पिल्लै लोकाचार्य के दिव्य विग्रह और उनके सभी शिष्यों की महानता और उन दिनों उनकी तिरुवरंगम में उपस्थिति के ध्यान योग में थे।

विळान् चोलै पिल्लै का दिव्य विग्रह मकड़ी के जाले से ढका हुआ था।

तिरुवाय्मोली पिल्लै (शैलेश स्वामीजी) उनके चरणों में प्रणाम करके उनके समक्ष शांति से खड़े हो जाते हैं। विळान् चोलै पिल्लै तुरंत अपनी आँखें खोलकर तिरुवाय्मोली पिल्लै पर कृपा करते हैं। वे अपने शिष्य को देखकर बहुत प्रसन्न हुए जिनकी वे प्रतीक्षा कर रहे थे।

उन्होंने श्री वचन भूषण के दिव्य अर्थों को तिरुवाय्मोली पिल्लै को सिखाया। इसके अतिरिक्त उन्होंने 7 पासूरों की सप्त गाथा की रचना की जो श्री वचन भूषण का सार बताती है और वह सप्त गाथा भी उन्होंने तिरुवाय्मोली पिल्लै को समझाया।

यह तोंडराडीप्पोड़ी आलवार (भक्तांघ्रिरेणु स्वामीजी) द्वारा कहे गये “कोडुमिन कोणमिन” पासूर का प्रमुख उदाहरण था कि लव् कुल के विळान् चोलै पिल्लै ने श्री वैष्णवता का सार दिया और ब्राह्मण कुल के तिरुवाय्मोली पिल्लै (शैलेश स्वामीजी) ने उसे प्राप्त किया।

कुछ समय बाद, तिरुवाय्मोली पिल्लै (शैलेश स्वामीजी), विळान् चोलै पिल्लै से आज्ञा लेकर प्रस्थान करते हैं, और श्री रामानुज के दर्शन प्रवर्तक बनने की राह पर आगे चलते हैं।

——————————————————————————————————————————————

विळान् चोलै पिल्लै की चरम यात्रा

एक दिन नमबूधिरी, अनंत पद्मनाभ भगवान की आराधना करते हुए देखते हैं कि विळान् चोलै पिल्लै पूर्वी द्वार से मंदिर में प्रवेश करते हैं, ध्वज स्तंब और नरसिंह भगवान की सन्निधि को पार करते हुए वे उत्तर द्वार से गर्भ गृह में प्रवेश करते हुए “ओर्रै कल मण्डप” के समीप से सीढियाँ चढते हैं और भगवान के सेवा दर्शन देने वाली तीन खिडकियों में से उस खिड़की के समीप खड़े होते हैं जहाँ से भगवान के चरण कमलों के दर्शन होता है।

जब नमबूधिरी यह देखते हैं, वे सन्निधि के द्वार बंद करके मंदिर से बाहर आते हैं क्योंकि उस समय की रीती के अनुसार विळान् चोलै पिल्लै अपने कुल के कारण मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश नहीं कर सकते थे।

उसी समय, विळान् चोलै पिल्लै के कुछ स्थानीय शिष्य मंदिर में पहुंचकर यह बताते हैं कि उनके आचार्य विळान् चोलै पिल्लै ने अपने आचार्य पिल्लै लोकाचार्य के चरणों में प्रस्थान किया!! और वे लोग विळान् चोलै पिल्लै के दिव्य विग्रह के लिए तिरु पारियट्टम और भगवान की फूल माला चाहते थे !! वे लोग मंदिर प्रवेश द्वार के समीप खड़े होकर इरामानुज नूतरंदादी इयल आदि का पाठ करते हैं।

जब नमबूधिरी यह देखते हैं, उनके पूर्व में हुई गर्भगृह की घटना से बहुत अचंभा होते है और वे सभी को इसके बारे में बताते हैं!

जिस प्रकार तिरुप्पणालवार (योगिवाहन स्वामीजी) पेरिय कोइल में पेरिय पेरुमाल के श्री चरण कमलों में पहुंचे, उसी प्रकार यहाँ विळान् चोलै पिल्लै ने अनंत पद्मनाभ भगवान के श्री चरणों में प्रस्थान किया!

इस समाचार को सुनने के बाद, तिरुवाय्मोली पिल्लै (शैलेश स्वामीजी) ने सभी चरम कैंकर्य किये जो एक शिष्य को अपने आचार्य के लिए करना चाहिए और पूर्ण रूप से तिरुवध्ययन भी संपन्न किया। यह द्रष्टांत पेरिय नम्बि (महापूर्ण स्वामीजी) द्वारा मारनेरी नम्बि के प्रति किये गए चरम कैंकर्य का स्मरण कराता है।

उनका जन्मनक्षत्र अश्विनी -उत्तरभाद्रपद है, जो नंदन वर्ष 2012 में शनिवार, 27 अक्टूबर को मनाया गया था।

—————————————————————————————————————————————–

यह पंक्तियाँ उन शिष्यों द्वारा दी गयी है, जो विळान् चोलै पिल्लै के प्रति तिरुवाय्मोली पिल्लै के शिष्य भाव की महानता को दर्शाते हैं।

पटराद् एंगल मणवाल योगी पदम् पणीन्दोन्

नररेवरास-नलनतिन्गल् नारनता दरुदन्

कटरारेंकूरकुलोत्तम् तादन् कलल् पणीवोन्

मटरारुम् ओव्वातिरुवाय्मोली पिल्लै वलियवे

—————————————————————————————————————————————

निम्न मंगलाशासन तिरुवाय्मोली पिल्लै द्वारा विळान् चोलै पिल्लै को समर्पित की गयी है।

वालि नलम् तिगल् नारणतादन् अरुल्

वालि अवन् अमुद वायमोलिगल् – वालिये

एरू तिरुवुदैयान् एन्दै उलगारियन् सोल्

तेरू तिरुवुदैयान् सीर्

—————————————————————————————————————————————

अदियेन् भगवति रामानुजदासी

आधार : https://acharyas.koyil.org/index.php/2015/05/29/vilancholai-pillai-english/

archived in https://acharyas.koyil.org/index.php , also visit http://ponnadi.blogspot.com/

pramEyam (goal) – https://koyil.org
pramANam (scriptures) – http://srivaishnavagranthams.wordpress.com
pramAthA (preceptors) – https://acharyas.koyil.org
srIvaishNava Education/Kids Portal – https://pillai.koyil.org

1 thought on “विळान् चोलै पिल्लै”

Comments are closed.