श्रीः
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्री वानाचलमहामुनये नमः
आपने पूर्व अनुच्छेद में, “श्री संप्रदाय” के प्रवर्तन सम्प्रदाय की गुरुपरम्परा का वर्णन परिमित मात्रा अर्थात सीमित मात्रा में किया था । उसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए इस पर विस्तृत प्रकाश यहाँ पर प्रस्तुत कर रहे है ।
असंख्य कल्याण गुणों से परिपूर्ण एम्पेरुमान (श्रीमन्नारायण – श्रिय:पति अर्थात श्रीमहा-लक्ष्मीजी के पति) , श्री वैकुण्ठ में अपनी देवियो (पत्नियों श्रीदेवी, भूदेवी, नीळादेवी) के साथ सदैव बिराजमान हैं , जहाँ सदैव नित्य-सूरी (गरुडाळ्वार, विष्वक्सेनार, अनन्तशेष) इत्यादि भगवान की नित्य कैंकर्य में सलंग्न है। यद्यपि वैकुण्ठ में भगवान आनन्दित है, परंतु भगवान का हृदय जीवात्मा (बद्ध जीव जो भौतिक जगत के भव सागर मे डूबा हुआ है) का उध्दार कैसे हो, इसी से विचलित रहता है। यहाँ तीन प्रकार के जीवों का वर्णन भगवद रामानुज स्वामीजी ने अपने श्री भाष्य में किया है – (1) नित्य सुरी (नित्यन्) – जो अनादिकाल से परमपद में भगवद्कैंकर्य में लीन है (अर्थात जो कभी भी इस भौतिक जगत में अपने कर्मानुसार नहीं आते) (2) मुक्तात्मा (मुक्तन्) – जो पहले इस भौतिक जगत में आये, भगवान श्रीमन्नारायण की शरणागति कर मुक्त जीव का पद पाकर ( ८४ लक्ष योनियों का आवागमन छोड़ ), भगवान श्रीमन्नारायण के कैंकर्य में परमपद में रहते है (3) बद्धात्मा (बद्धन्) – जो अनादिकाल से इस भौतिक जगत में है। ये सारे जीव भगवान के सेवक (यानि दासभूत) है और भगवान से पिता-पुत्र / शेष-शेषि भाव का सम्बन्ध रखते है। और इसी सम्बन्ध के नाते भगवान इस भौतिक जगत में फंसे जीवात्मों की सहायता करके उन्हें अपने नित्य धाम के प्रति आकर्षित करते है, जिससे वे परमपद पहुँचकर भगवद कैंकर्य में समील्लित हो सके ।
हमारे पूर्वाचार्यों ने बतलाया है कि सही ज्ञान से मोक्ष कि प्राप्ति होती है और यही ज्ञान हमारे पूर्वचार्यों ने रहस्यत्रय द्वारा समझाया है। और इस ज्ञान को प्रदान करनेवाले ही आचार्य कहलाये गये है। क्योंकि यह आचार्य स्थान इतना श्रेष्ठ है, स्वयं भगवान ने प्रथामाचार्य बनना स्वीकार किया। सम्प्रदाय का १. मूल मंत्र २. द्वय मन्त्र और ३. चरम मंत्र स्वयं भगवान श्रीमन्नारायण ने ही आचार्य स्वरुप में प्रदत्त किये है। इसी विषय में हमारे पुर्वाचार्य कहते है-
- भगवान ने अपने नारायणऋषि अवतार में अपने शिष्य नारऋषि को अष्टाक्षरमहामंत्र का उपदेश दिया।
 - भगवान ने द्वयमहामंत्र का उपदेश अपनी सपत्नी पेरिय पिराट्टि को दिया।
 - भगवान ने चरमश्लोक का उपदेश अपने कृष्णावतार में अपने शिष्य अर्जुन को कुरुक्षेत्र में दिया।
 
पेरिय पेरुमाळ और पेरिय पिराट्टि जो साक्षात् भू वैकुण्ठ तिरुवरंगम् (श्रीरंगम) में विराजे है, वे साक्षात भगवान श्रीमन्नारायण और श्रीमहालक्ष्मीजी है। पेरिय पेरुमाळ से प्रारंभ, हमारे सत्सम्प्रदाय की आचार्य परम्परा को ओराण्वळि गुरुपरम्परा कहते है ।
सबसे पहले हम “ओराण्वळि” का अर्थ समझेंगे । ओराण्वळि – दो शब्दों (ओराण् और वळि) के संयोग से बना है । ओराण्वळि याने यह एक द्रविड़ शब्द है, जिसका अर्थ है, एक ही मार्ग , एक ही ध्येय, एक ही पथ और ओराण्वळि गुरुपरम्परा का अर्थ है निरंतर चली आ रही आचार्य परम्परा में शुरू से एक ही ध्येय, एक ही मार्ग और एक ही पथ का प्रचार प्रसार करने वाली आचार्य परम्परा. इस दिव्यज्ञान का प्रचार प्रसार करने वाले आचार्य । जगन्माता पराम्बा माँ लक्ष्मीजी के बाद इस परम्परा के आचार्य पद को सुशोभित करने वाले आचार्य ही इस आचार्य परम्परा की गिनती में आते है जो अळगिय मनवाळ मामुनिगल (श्रीवरवरमुनि स्वामीजी) तक ही है
हमारी ओराण्वळि गुरुपरम्परा का क्रम कुछ इस प्रकार है –
- पेरिय पेरुमाळ (श्री रंगनाथ पेरुमाळ)
 - पेरिय पिराट्टि (श्री रंगनाच्चियार्)
 - सेनै मुदलिआर् (श्री विष्वक्सेनजी)
 - नम्मालवार (श्री शठकोप स्वामिजी)
 - नाथमुनिगल् (श्री नाथमुनि स्वामीजी)
 - उय्यक्कोन्डार् (श्री पुण्डरिकाक्ष स्वामीजी)
 - मणक्काल् नम्बि (श्री राममिश्र स्वामीजी)
 - आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य स्वामीजी)
 - पेरिय नम्बि (श्री महापूर्ण स्वामीजी/ श्री परांकुशदास)
 - एम्पेरुमानार् (श्री रामानुजाचार्य स्वामीजी)
 - एम्बार् (श्री गोविन्दाचार्य स्वामीजी)
 - श्री पराशर भट्टर्
 - नन्जीयर् (श्री वेदांती स्वामीजी)
 - नम्पिळ्ळै (श्री कलिवैरीदास स्वामीजी)
 - वडक्कु तिरुवीधि पिळ्ळै (श्री कृष्णपाद स्वामीजी)
 - पिळ्ळै लोकाचार्य (श्री लोकाचार्य स्वामीजी)
 - तिरुवाइमोळि पिळ्ळै (श्रीशैलेश स्वामीजी)
 - अळगिय मनवाळ मामुनिगल (श्रीवरवरमुनि स्वामीजी)
 
आळ्वार और कई सारे श्री वैष्णवाचार्य भी इस गुरुपरम्परा के अन्तर्गत आते है। आळ्वारों की विषय सूची कुछ इस प्रकार है
- पोइगै आळ्वार (श्री सरोयोगी स्वामीजी)
 - भूदताळ्वार (श्रीभूतयोगी स्वामीजी)
 - पेयाळ्वार (श्री महद्योगी स्वामीजी)
 - तिरुमळिसै आळ्वार (श्री भक्तिसार स्वामीजी)
 - मधुरकवि आळ्वार (श्री मधुरकवि स्वामीजी)
 - नम्मालवार (श्री शठकोप स्वामीजी)
 - कुलशेखराळ्वार (श्री कुलशेखर स्वामीजी)
 - पेरियाळ्वार (श्री विष्णुचित्त स्वामीजी)
 - आण्डाळ् (गोदाम्बजी)
 - तोन्डरडिप्पोडि आळ्वार (श्री भक्तांघ्रिरेणु स्वामीजी)
 - तिरुप्पाणाळ्वार (श्री योगिवाहन स्वामीजी)
 - तिरुमंगै-आळ्वार (श्री परकाल स्वामीजी)
 
हमारे सम्प्रदाय के आचार्य, जो ओराण्वळि गुरु परम्परा के अन्तर्गत् नहीं है, उनके नामो की सूचि कुछ इस प्रकार से है (ध्यान देने की बात है यह सूचि मात्र यहाँ तक ही सिमित नहीं है) –
- शेल्व नम्बि
 - कुरुगै कावलप्पन् (श्री कुरुकानाथ स्वामीजी)
 - तिरुक्कण्णमन्गै आण्डान्
 - तिरुवरन्गप्पेरुमाळ् अरैयर् (श्री वररंगाचार्य स्वामीजी)
 - तिरुक्कोश्टियूर् नम्बि (श्री गोष्ठीपूर्ण स्वामीजी)
 - पेरिय तिरुमलै नम्बि (श्री शैलपूर्ण स्वामीजी)
 - तिरुमालै आण्डान् (श्री मालाधर स्वामी)
 - तिरुक्कचि नम्बि (श्री कान्चिपूर्ण स्वामीजी)
 - माऱनेरि नम्बि
 - कूरत्ताळ्वान् (श्री कूरेश स्वामीजी)
 - मुदलियान्डान् (श्री दाशरथि स्वामीजी)
 - अरुळाळ पेरुमाळ् एम्पेरुमानार् (श्री देवराज स्वामीजी/ यज्ञमूर्ति)
 - कोयिल् कोमाण्डूर् इळैयविल्लि आच्चान् (श्रीबालधन्वी गुरु)
 - किडाम्बि आच्चान् (श्री प्रणतार्तिहर स्वामीजी)
 - वडुग नम्बि (श्री आंध्रपूर्ण स्वामीजी)
 - वन्गि पुरत्तु नम्बि
 - सोमासियाण्डान् (श्री सोमयाजि स्वामीजी)
 - पिळ्ळै उऱन्गाविल्लिदासर् (श्री धनुर्दास स्वामीजी)
 - तिरुक्कुरुगैप्पिरान् पिळ्ळान्
 - कूर नारायण जीयर्
 - एन्गळाळ्वान् (श्री विष्णुचित्त स्वामीजी)
 - अनन्ताळ्वान् (श्री अनन्ताचार्य स्वामीजी)
 - तिरुवरन्गत्तु अमुदनार् (श्रीरंगामृत स्वामीजी)
 - नडातुर् अम्माळ्
 - वेद व्यास भट्टर्
 - श्रुत प्रकाशिका भट्टर् (श्री सुदर्शनसूरि स्वामीजी)
 - पेरियवाच्चान् पिळ्ळै
 - ईयुण्णि माधव पेरुमाळ् (श्री माधवाचार्य स्वामीजी) (यहाँ श्री कलिवैरीदास स्वामीजी के महा व्याख्यान ईदू का इतिहास भी सम्मिलित है)
 - ईयुण्णि पद्मनाभ पेरुमाळ् (श्री पद्मनाभाचार्य स्वामीजी)
 - नालूर् पिळ्ळै (श्री कोलवराहाचार्य स्वामीजी)
 - नालूराच्चान् पिळ्ळै (श्री देवराजाचार्य स्वामीजी)
 - नडुविल् तिरुवीदि पिल्लै भट्टर्
 - पिन्भळगिय पेरुमाळ् जीयर्
 - अळगिय मनवाळ पेरुमाळ् नायनार्
 - नायनाराच्चान्पिळ्ळै
 - वादिकेसरी अऴगिय मणवाळ जीयर
 - कूर कुलोत्तम दासर्
 - विळान् चोलै पिल्लै
 - श्री वेदान्ताचार्य स्वामीजी
 - तिरुनारायणपुरत्तु आय् जनन्याचार्यर्
 
मणवाळ मामुनि (के समय / उनके बाद) जो महा श्रीवैष्णवाचार्य हुए है, जिनकी सूची कुछ इस प्रकार है-
- पोन्नडिक्काल् जीयर्/ वानान्द्रीयोगी स्वामीजी (श्री तोताद्रि मत् प्रथम स्वामि)
 - कोयिल् कन्दाडै अण्णन्
 - प्रतिवादि भयंकरम अण्णन्
 - पत्तन्गि परवस्तु पट्टर्पिरान् जीयर्
 - एऱुम्बि अप्पा
 - अप्पिळ्ळै
 - अप्पिळ्ळार्
 - कोयिल् कन्दाडै अप्पन्
 - श्री भूतपुरि आदि यतिराज जीयर्
 - अप्पाच्चियारण्णा
 - पिळ्ळै लोकम् जीयर्
 - तिरुमळिसै अण्णावप्पन्गार्
 - अप्पन् तिरुवेंकट रामानुज एम्बार् जीयर्
 
अपने सत्-सम्प्रदाय के सदाचार्यों के जीवन के विषय में हम आगे के अनुच्छेदों मे चर्चा करेंगे|
– अडियेन सेतलूर सीरिय श्रीहर्ष केशव कार्तीक रामानुजदासन्
– अडियेन वैजयन्त्याण्डाळ् रामानुजदासि
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It’s immaculate. No words to define.